2/24/13

एक लोटा समंदर - भाग ४ (आखिरी भाग)

एक लोटा समंदर - भाग १
एक लोटा समंदर - भाग ३ 
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मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ| मेरे पैसे रमेश छीन कर भाग चुका था, और वो भी कोई आम पैसे नहीं थे, फीस के पैसे थे| ये बात बब्बा को पता लगी तो मेरी खैर नहीं थी| और कहीं गलती से ये पता लग गया की पैसे कैसे गए हैं तब तो और खैर नहीं थी| घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के कारन पैसों की बहुत अहमियत थी, वैसे भी एक किसान के घर में एक एक पैसे का हिसाब रखा जाता है, तब पर भी पूरा नहीं पडता है|

पैसे वापस मिलना भी संभव नहीं था, अब तक तो रमेश ने उन पैसों से दूसरा लट्टू खरीद लिया होगा| अभी तो मैं स्कूल भी नहीं जा सकता था| मुझे ऐसा लग रहा था की मैं स्कूल गया तो मैडम फीस के बारे में जरूर पूछेंगी और फीस नहीं मिलने पर मेरा नाम आज ही कट जायेगा|

बब्बा की नजर में मैं बहुत अच्छा लड़का था, पढ़ने में बहुत होशियार, बड़ों का सम्मान करना, सभी काम समय से खतम करना जैसे आदर्श बालक के सभी गुण मेरे अंदर थे| और इन सब का बब्बा सभी के सामने बहुत बखान भी करते थे और गांव के बाकि लड़कों, बड़े क्या छोटे क्या, को मेरी मिसाल दिया करते थे| मुझे लगा की अब मैं बब्बा की नज़रों में गिर जाऊँगा|

ऐसी ही कई विचार, जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं था, मेरे दिमाग में आने लगे| जब आप छोटे होते हो तब आपकी दुनिया बहुत सीमित होती है| घर, परिवार, स्कूल, दोस्त यही सब आपकी दुनिया होती है, और इस दुनिया में थोडा सा असंतुलन आते ही आपका बाल मन सोचता है की अब सब खतम हो गया| मेरी भी हालत वही थी, अंततः मार खाने और नाम कटाने से बचने के लिए मैंने मन बनाया की मैं भाग जाऊँगा| मैंने सुन रखा था की बगल वाले गाँव के पास जो बजार है, उसके बाहर से जो सड़क जाती  है उस पर इलाहबाद जाने की बस मिलती है| वहाँ जाकर क्या करूँगा, ये अभी सोचा नहीं था|

सड़क से मुझे बहुत डर लगता था, सड़क पर तेज भागती गाड़ियों का खौफ गांव के सभी बचों में था, आज तक मैं सड़क तक अकेले नहीं गया था | सड़क बहुत दूर भी थी, लेकिन मैंने मन बना लिया था और अपने नन्हे कदम तेजी से बढाता जा रहा था| लेकिन जितना ही मैं के सड़क के करीब आता गया, उतना ही मेरा डर बढ़ता गया| मैं सड़क से कुछ दूरी पर आकर ठिठक कर रुक गया| सड़क पर बहुत गाडियां तो नहीं थी, लेकिन जो भी वो बहुत तेजी में होर्न बजती हुई, इधर से उधर भागी जाती थी|

तभी अचानक से एक सवारी जीप तेजी से होर्न बजाते हुए, सामने चलती बस को ओवरटेक करने के चक्कर में मेरे बहुत करीब से निकली| ये इतनी अचानक से हुआ की मुझे कुछ पता ही नहीं चला, अगले ही छन मैं तेजी से वापस कुएं की तरफ भाग रहा था| ठण्ड थी फिर भी मैं पसीने से तर-बतर हो गया, हांफ हांफ के जान निकली जा रही थी लेकिन फिर भी जब तक मैंने कुएं तक नहीं पहुंचा तब तक भागता ही रहा, और कुएं पर पहुँच कर उसके चबूतरे के पास ही गश खाकर गिर गया|

उसके बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं, जब मेरी आँखें खुली तो मैं अपने दालान के बाहर खटिया पर पड़ा था| मम्मी धीरे धीरे मेरा सर सहला रही थी| खटिया के सामने बब्बा खड़े थे और थोड़ी ही दूर पर रमेश भी खड़ा था|

“ कईसन हए अब ? ” बब्बा ने पूछा|
“ठीक हूँ”
“बिहोश कैसे होई गए ?”
“वो मैं वो ...” मैं इतना बोल कर चुप हो गया, मुझे लगा सड़क वाली बात तो इन्हें पाता नहीं होगी|
“सरकिया पे काउ करइ ग रहे ?” बब्बा को न जाने सब कैसे पाता चल चुका था|
मुझे इसका कोई जवाब नहीं सूझा, मैं बस मम्मी की गोद में सिमट गया|

असल में हुआ ये था की रमेश मुझसे पैसे छीन कर भाता तो, लेकिन स्कूल नहीं गया और न ही मेरे पैसों से उसने लट्टू ख़रीदा| मैं उसका सबसे अच्छा दोस्त था, और मेरे पैसे छीन कर वो बहुत दुखी था| पैसे वापस देने के लिए वो वापस से कुएं पर आने लगा तो उसने मुझे सड़क से कुएं की तरफ भागते हुए देखा, कुएं पर पहुँच कर जैसे ही मैं बेहोश हुआ वो पास के खेतों में काम कर रहे बब्बा को बुला लाया|

“अगली बार भागिहो तो बताई के भागिहो” बब्बा ने हंसते हुए कहा, और सभी लोग हंसाने लगे| उन्हें सब पाता लग गया था, मैं भी मम्मी की गोद में बैठे बैठे मुस्कुराने लगा|

अगली सुबह स्कूल जाने से पहले मैं रमेश के घर गया तो वो पहले ही निकल गया था| शायद वो अब भी लट्टू की घटना के कारण मुझसे नहीं मिलना चाह रहा था| मैं कुएं पर पहुंचा तो रमेश पहले से बैठा दिखा मुझे| मैं भी रुक गया| कुछ देर हमने कुछ नहीं बोला फिर उसने कहा - “माफ कर दे ना यार”

रमेश ने इस तरह माफ़ी मांगी तो मुझे लगा की गलती तो मेरी थी, लेकिन माफ़ी रमेश मांग रहा है| मैंने भी रमेश से कहा - “गलती मेरी ही थी, मुझे लट्टू चलाना नहीं आता था, तो मुझे जिद नहीं करनी चाहिए थी”

“चल सिखाता हूँ तुझे लट्टू”, ऐसा कहकर उसने दो चमकते हुए लट्टू जेब से निकाले|
“कहाँ से मिले ?”
“बब्बा ने फीस के पैसे वापस नहीं लिए और लट्टू खरीदने को कहा”|

लट्टू नचाते उछालते हम स्कूल की ओर चल दिए|