12/26/14

आओ ना




आओ ना
जरा पास आओ ना
दो प्याली चाय बनाते हैं,
थोडा अदरक और ज्यादा इलायची डालेंगे
एक तुम पीना एक मैं पीता हूँ
फिर बैठ करेंगे ढेरों बातें
कुछ मैं अपनी बताता हूँ
कुछ तुम अपनी सुनाओ ना
जरा पास आओ ना
याद है तुम जान बूझ कर चीनी कम कर देती थी
शिकायत पर कैसा गुस्सा होने का नाटक करती थी
फिर चखने के बहाने मेरी चाय जूठी कर देती थी
मैं कहता तुम्हारे होंठ छूकर अब मीठी हो गयी है
तो कैसे खिलखिला के हँसती थी
फिर वैसे ही मुस्कुराओ ना
जरा पास आओ ना
गुलाब का एक फूल तुमने टूटी बाल्टी में लगाया था
बालकनी में घंटो बैठ कर निहारा करती थी उसे
याद तो होगा उसे एक दिन बन्दर नोच गया था
तुम कैसे तकिये में घंटों सर छिपा के रोई थी
तुम्हे देख मुझे भी रोना आ गया था
फिर वैसे ही रुलाओ ना
जरा पास आओ ना
याद है जिद करी थी तुमने एक दिन कुछ पकाने की
फिर गैस खुला छोड़ सब धुआं धुआं कर दिया था
पैर पे पैर रखे उँगलियों में उंगलियाँ फंसाए खड़ी थी
धीरे से मैंने तुम्हारे गाल पर प्यार भरी चपत मारी थी
फिर हम दोनों ने जला खाना ही खाया था उस दिन
फिर वैसा कुछ खिलाओ ना
जरा पास आओ ना


गर्मी में लाल हरा बरफ का गोला खाना पसंद था तुम्हे
एक बरफ का गोला तुमने मेरी सफ़ेद शर्ट पर गिराया था
फिर दाग धोते धोते उसकी एक बटन टूट गयी थी
वो मेरी पसंदीदा शर्ट थी, मैं बहुत गुस्सा हुआ था तुम पर
मेरे गुस्से पर भी तुमने प्यार जता शर्ट की बटन टांक दी थी
फिर वैसा प्यार जताओ ना
जरा पास आओ ना
पड़ोस वाले फ्लैट की आंटी से तुम कितना चिढ़ती थी
उनका कुत्ता घुस आया था एक दिन घर में
बालकनी में उसे छिपा कैसा दुखी होने का ढोंग किया था तुमने
लेकिन फिर उनके घर छोड़ जाने पर बहुत दुखी हुई थी तुम
मेरे कंधे पर सर रख डबडबाती आँखों से शाम बितायी थी तुमने
फिर वैसी एक शाम बिताओ ना
जरा पास आओ ना


याद है अचानक बिजली चली गयी थी एक दिन
हम छत पर चटाई लेकर चले गए थे चाँद देखने
तारे निहारते हमारी आँखे चार हुई थी
मेरे होठ तुम्हारी ओर बढे थे
शरमाकर तुमने उँगलियों से उन्हें सी दिया था
फिर वैसे शरमाओ ना
जरा पास आओ ना
तुम जो कुछ कहते रूक गयी थी एक दिन
टेबल का किनारा पकड़ सर नीचे कर के रोने लगी थी
मैं बेवकूफों सा असमंजस में खड़ा था
फिर वो बात अधूरी ही छूट गयी थी
वो बात अब भी अधूरी ही है
क्या बात थी बताओ ना
जरा पास आओ ना

आओ ना
जरा पास आओ ना