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हालाँकि ऐसी चीजों की संख्या बहुत कम है, लेकिन कुछ चीजों से मुझे जीवन पर्यंत नफरत रही है | और ऐसी ही चीजों में से एक है बाल कटाना| फिर चाहे वो मुरलीधर चाचा की जंग लगी कैची से छंदूदर कट हो या फिर रोजी के कोमल हाथों से “lacope froce de hair” कट हो, आज भी बाल कटाने के नाम पर खीझ जाता हूँ| ऐसा लगता है की किसी शाशक के गुलाम हैं, वो जो भी कहता है करना पड़ता है, मुंडी इधर करो उधर करो, नीचे टिका के बैठे रहो, मन कहता है कि बोल दूं - चाचा उस्तरा उतार ही दो गर्दन पर ये झंझट तो ख़तम हो कम से कम |
गाँव में हमें बाल कटाने के लिए नाई की दुकान पर नहीं जाना होता था, बल्कि नाई खुद ही हमारे घर आता था| मुरलीधर चाचा महीने में एक दिन अपना साजो सामान लेके आते थे और जब आते थे तो बड़े इत्मीनान से आते थे पूरे दिन के लिए| सबेरे सबेरे हमारे जागने के पहले ही उपस्थित हो जाते थे, और उन्हें देखते ही घर के सभी बच्चे चूजों की भांति इधर उधर तितर बितर हो जाते थे, संयुक्त परिवार था तो घर में बच्चों की संख्या भी कम नहीं थी|
कुए पर ही मुरलीधर चाचा नहाते थे और फिर खाना पीना खाकर अपनी दुकान सजाते थे| दो कैंचियाँ जिन पर जंग की थोड़ी झलक आने लगी थी, एक छोटा शीशा, दो-तीन उस्तरे,साबुन, फिटकरी और पानी रखने का एक कटोरा | कुछ सालों के बाद इस पोटली में एक झाग वाले क्रीम और पाउडर की भी भर्ती हो गयी थी सब साजों समान फिट करने के बाद बाल कटाई का कार्यक्रम चालू होता था फिर आपके बाल चाहे छोटे हो या बड़े, इससे कोई मतलब नहीं, घर के सभी बच्चों को ढूँढ ढूँढ कर बाल कटाए जाते थे| अंत में सबके बाल कट जाने के बाद बब्बा अपनी दाढ़ी बनवाते थे और बाल कटवाते थे और एक दो सेर गेहूं या चावल देके मुरलीधर चाचा की विदाई करते थे| मुरलीधर चाचा हमारे घर की शादी बारात में भी आते थे कुछ रस्में अदा करने जो की एक नाई ही करता है, लेकिन मैं उनसे हमेशा दूरी बनाये रखता था की कहीं अभी कैंची उस्तरा निकाल के कटाई न चालू कर दे|
फतेहपुर में आने के बाद बाल कब कटने है और कैसे कटने हैं इसका फैसला हमारे पिताजी लिया करते थे| बाल बढ़ के कान पर आये नहीं कि “घसियारा" “जंगली" “भूत” जैसे शब्दों से पहले तो कुछ दिन अभिनन्दन होता था और फिर पिताजी मुझे और मेरे भाई को लेके जुम्मन चाचा की दुकान पर पहुँच जाते थे |
गाँव से नया नया आने पर उनके “मॉडर्न केश कर्तनालय एवं सज्जा" नामक सलून ने मुझे बहुत प्रभावित किया| दीवार पर तीन ओर शीशे लगे थे, और हीरो हीरोइंस की भिन्न भिन्न मुद्राओं में तस्वीरें दीवार पर चिपकी थी| मोहम्मद अजहरूदीन के पोस्टर वाला एक कैलंडर टेंगा हुआ हा | दो तीन तरह के अख़बार पड़े रहते थे और कोने में ऊपर की तरफ एक छोटी से टीवी भी राखी हुई थी| फिर इनके साथ भिन्न भिन्न प्रकार की कैंचियाँ, उस्तरे, क्रीम और न जाने क्या क्या| और इन सब के साथ थी गोल घूमने वाली गद्दीदार कुर्सियां, जो की महँगी होने के साथ साथ ही कानपुर से मंगाई गयी थी| हम जितनी बार बाल कटाने गए, उतनी बार पिताजी को उन महँगी कुर्सियों की खरीद की कहानी जुम्मन चाचा से सुनने को मिलती थी| लेकिन हमारा दुर्भाग्य ये की हम कभी उन गद्दीदार कुर्सियों पर बैठ नहीं पाए, क्यों की बच्चों के बाल काटने के लिए कुर्सी पर ही एक लकड़ी का पटारा लगा दिया जाता था और बच्चों को उस पर बिठा दिया जाता था |
लेकिन इन सब सुविधाओ के कारण जुम्मन चाचा की दुकान पर हमेशा भीड़ रहती थी| और कुछ चेहरे तो हमेशा ही उस भीड़ का हिस्सा रहते थे| उन्हें बाल नहीं कटाना होता तो भी वो टाइम पास करने के लिए जुम्मन चाचा की दुकान पर हाजिरी लगाने आ जाते थे| क्रिकेट में सचिन की बल्लेबाजी के किस्से हो की फिल्मों में धरमेंदर के बेटे सनी देओल की दिलेरी के किस्से| इन सब से जी न भरे तो कांग्रेस की विदेश नीति पर चर्चा ही सही| बैठे बैठे ही जुम्मन चाचा की दुकान पर पूरे देश का बजट बन जाता था|
खुद से बाल कटाने की छूट मुझे पहली बार आठवीं कक्षा में मिली| कह नहीं सकता की मुझे इस बात से ख़ुशी हुई थी या नहीं, लेकिन हाँ एक अलग तरह की स्वतंत्रता का अनुभव जरूर हुआ| लेकिन पिताजी के साथ न जाने का एक नुकसान ये हुआ की अब मुझे बहुत देर तक लाइन में बैठना पड़ता था| और इसकी वजह से न जाने ही कितनी बार मेरा फेवरिट प्रोग्राम कैप्टन व्योम छूटा था| और प्रतापगढ़ में हमें जो नाइ की दुकान मिली उसके रंग अलग ही थे| दूकान के बिल्कुल सामने एक नाला हुआ करता था| दूकान में भी दीवारों पर सीलन हुआ करती थी और इन सब की वजह से मच्छरों का पूरा झुण्ड दुकान में स्वछंद सार्टी किया करता था| गलती से हाफ पेंट पहनकर बाल कटाने चले गए तो फिर तो पूछिए ही मत|
और रामलाल चाचा भी ये नहीं की बाल काटें| बाल काटते काटते बीच में ही रूक के न जाने कहाँ कहाँ की कहानिया सुनाने लगते थे बाकि बैठे लोगों को| बाबा आदम के ज़माने का एक पंखा लगा हुआ था, जिसे देख के ऐसा लगता था की चट से अब गिरा की तब गिरा| गर्मी में पसीना आये जा रहा है, बाल काटने से चुनचुनाहट हो रही है| माचर काटे जा रहा है, तिलमिलाहट अलग हो रही है लेकिन सर हिला नहीं सकते की उस्तरा लगा हुआ है| हाथ में पैर में गर्दन पर न जाने कहाँ कहाँ से मच्छरों ने सुई चुभोई हुई होती थी| लकिन रामलाल जी की कहानी नहीं थमती थी| चाचा के लड़की की शादी में बन्दूक चल गयी, पडोसी के भैंस मेरा खेत चर गयी, हमारा भाई बम्बई में हीरो बनाने गया है, चकबंदी ऑफिस में पागल कुत्ता घुस गया था, और न जाने क्या क्या| मन करता था बोल दूं की चाचा ऐसा करो पहले उस्तरा हमारी गर्दन पे उतार दो फिर बैठ के आराम से देश विदेश की कहानियाँ सुनाओ| बाल काटने के बाद जब पाउडर लगा के रामलाल जी बोलते थे की भाई राहुल चलो बाल कट गए, तो ऐसा लगता था मानों सालों काले पानी की सजा काटने के बाद आज जेल से छुट्टी हुई है| ठंडी हो चाहे गर्मी, नहाने में उस दिन जो आनंद आता था उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है|
जब तक मैं कालेज में नहीं गया तब तक मेरी न तो हेयर स्टाइल में कोई बदलाव आया और न ही बाल कटाई के पैसो में| कैसे काटने हैं? इस सवाल का एक ही जवाब होता था, छोटे छोटे कर दो| मुझे लगता था की जितने छोटे रहेंगे उतना ही अच्छा है, संभालना नहीं पड़ेगा| और इन सब के लगते थे ज्यादा से ज्यादा १० रूपये कभी रोड साइड खुले में सिर्फ कुर्सी शीशे सेशे वाली दुकान पे कटा लिया तो ५ रूपये में ही काम चल जाये|
कालेज में भी पहला सेमेस्टर तो छोटे बालों में ही बीता, हमारे परम पूज्यनीय आदरणीय सीनियर्स ने बाल बढ़ने ही नहीं दिए| फ्रेशेर्स के बाद जब बाल कटाने की नौबत आई तो लड़कों ने सिविल लाइन्स में स्थित R K मेंस पार्लर ढूँढ निकला| पहली बार मैंने २५ रूपये की बाल कटाई देखी| बाल कटाई भी क्या, नाई ने कैची बस बालों को दिखा दिखा के हटा ली| वहां का एक नाई सुनील बड़ा ही फैशनी था, उसके अनुसार उसने दुबई में बाल काटने की कला सीखी थी | अगर उसे नाई बोलो तो बड़ा गुस्सा करता था, वो अपने आपको हेयर स्टाइलिशट या फिर कम से कम बार्बर कहलाना पसंद करता था|
झटका तो मुझे तब लगा जब मैं पढाई करने अमरीका आया| मैं तो भारत से ही बाल एकदम छोटे छोटे करा के गया था की जल्दी कटाने न पड़े| एकदिन मेरा एक दोस्त बल कटा के आया, मैंने पूछा की कितने लगे तो उसने बोला टिप के साथ २०$| मैंने मन ही मन गुणा भाग किया,२०$ यानि की १००० रूपये| मतलब की जिंदगी भर की बाल कटाई में जितने पैसे नहीं लगे उतने तो यहाँ एक ही बार में लग जाने हैं| और टिप ? बाल कटाने में टिप कैसा ! ऊपर से बाल कटाने जाओ तो इतने सवालों से स्वागत होता है की लगता है नकारी के लिए इंटरव्यू देने आये हैं| क्लिपर लगाना है की नहीं, लगाना है तो कितने नंबर का, शैम्पू करना है क्या, और न जाने क्या क्या मेरे बाल भी बहुत बढे हुए थे, लेकिन मैंने तुरंत बाल कटाने का प्रोग्राम पोस्टपोन किया| २०$ की कहानी अपने भाई को बताई तो उसने बाल कटाई को ही बाकी चीजों के मूल्य का पैमाना बना लिया| भाई मोबाइल कितने का है ? ५००$ का ? यानि की सिर्फ २५ बाल कटाई, बड़ा सस्ता है फिर तो !
सेमेस्टर बीतता रहा और बाल बढ़ते रहे| लेकिन जाब बाल इतने बढ़ गए की घर वालों के साथ वीडियो चैट में कम से कम आधे घंटे मुझे मेरे बालों पर व्याख्यान दिया जाता था, तो मुझे बाल कटाने जाना ही पड़ा| हेयर स्टाइलिशट ने इंटरव्यू लेना चालू किया की कैसे काटने हैं तो मैंने सिर्फ इतना कहा की मैडम कैसे भी कर के बस छोटे छोटे कर दो ताकि वापस न आना पड़े कई महीने| फिर क्या रोजी ने अपने कोमल हाथों से क्लिपर लेके २ मिनट के अन्दर मेरे बालों की चार महीने की खेती धराशायी कर दी| ऐसा लगा मानों सर से ३-४ किलों का वजन कम हो गया है|
खैर अभी तो बहुत जिंदगी बाकी है, और बाल तो बढ़ते ही रहेंगे और ऐसी कहानियाँ भी बनती ही रहेंगी | और मेरा आपसे वादा है की मैं वो कहानियाँ सुनाता रहूँगा |