1/26/13

एक सूरज निकला था

पूरब ने अभी अभी सूरज को क्षितिज से निकलते देखा है| सूरज वैसे तो रोज ही निकलता है लेकिन आज सूरज का रंग और दिनों से ज्यादा लाल है और तपिश और दिनों से ज्यादा तेज है| कल रात भीषण चक्रवात के साथ मूसलाधार बारिश हुई थी| सब पानी पानी हो गया था, जन जीवन अस्त व्यस्त था, धरती कीचड में सन गयी थी| सूरज अपनी  चिलचिलाती धुप में सब कुछ सुखा देना चाहता था|

और ऐसा नहीं है की आकाश साफ़ था| रुई के फाहों से कुछ बादल पिघले नीलम से स्याह आकाश में इधर उधर बिखरे पड़े थे| लेकिन सूरज को इनसे कोई फरक नहीं पड़ रहा था| सूरज अपनी ही धुन में मदमस्त हाथी की भांति बढ़ रहा था और जैसे-जैसे दिन चढा सूरज भी बादलों की डोर पकडे आकाश के बीचों बीच आ गया| अब तो सूरज की तपिश और भी बढ़ गयी थी और लग रहा था की आज तो आकाश से आती सूर्य की चमक में सब कुछ विलीन हो जायेगा|

तभी क्षितिज से बादलों का एक छोटा झुरमुट उमडता-घुमड़ता दिखाई दिया| ये बादल सफ़ेद नहीं थे, ये काले बदल थे, जिनके बारे में मशहूर था की ये सिर्फ गरजते ही नहीं बरसते भी हैं| लेकिन इन बादलों का झुरमुट बहुत बड़ा नहीं था, लगा की इतना छोटा मरियल सा समूह आकाश में पूरी तीव्रता से चमकते सूर्य का क्या बिगाड़ पायेगा|

कुछ बादलों ने आगे बढ़ कर सूरज को ढक लिया और उसकी रोशनी को मद्धम कर दिया| हालाँकि बादलों के ऊपर सूरज ने चमकना नहीं छोड़ा, लेकिन अब ये चमक धरती तक नहीं पहुँच पा रही थी| कुछ सूरज ने इन काले बादलों के साथ संग्राम किया और कुछ हवा ने सूरज का साथ दिया, देखते ही देखते कुछ ही देर में ये काले बदल छंट गए और सूरज और भी तीव्र ओज से आकाश में चमकने लगा|

लेकिन ये बादल किसी भी तरीके से उस वीभत्स सेना का अंश मात्र भी नहीं थे जो क्षितिज पर सही समय आने का इंतजार कर रही थी| शायद बादलों का छोटा झुरमुट सिर्फ सूरज की टोह लेने आया था| क्षितिज पर फिर से बादलों का एक झुण्ड निकला और इस बार जैसे-जैसे वो हवा के रथ पर सवार सूरज की और आगे बढ़ा, उनके पीछे क्षितिज से निकलते काले बादलों की पूरी सेना दिखाई दी| वो आगे बढते ही जा रहे थे, जितना ही वो आगे बढ़ कर पीछे जगह खाली करते, क्षितिज से उतने ही नए काले बादल निकल कर उस आकाश को भर देते| हवा भी, जिसने अभी कुछ देर पहले सूरज को इन बादलों के प्रहार से बचाया था वो अब विश्वासघात पर उतर आई थी| धीरे धीरे आकाश बादलों से भर गया|

सूरज ने बहुत देर तक इन बादलों से लड़ाई की, कभी वो बादलों के पीछे जाकर वार करता तो कभी आगे आकार चमकता| इन बादलों से सूरज कभी विजय नहीं प्राप्त कर सका था, और आज का दिन कुछ अलग नहीं था, फिर भी सूरज इनसे जद्दोजहद करने में लगा था| कुछ देर में सूरज को बादलों ने पीछे धकेल दिय और धरती पर अंधकार छ गया, भीषण चक्रवात के साथ बदल बरसने लगे, अब पूरे आसमान में काले बादलों का राज था |

घंटों बारिश के बाद हवा ने बादलों को आकाश से खदेडना चालू किया| हवा का अब भी पता नहीं चल रहा था की वो सूरज के साथ है की बादलों के साथ| बादल हटे तो, लेकिन अपने हिस्से की तबाही वो बरपा चुके थे और अट्ठाहस करते हुए भागे जाते थे| जैसे जैसे बादल छंटे सूरज की एक झलक दिकाई दी| लेकिन दिन अब खतम होना चाहता था और सूरज एक घायल हारे हुए सिपाही की भांति गिरते पड़ते क्षतिज की ओर बढ़ता जा रहा था| क्षितिज पर पहुँच कर सूरज गिर गया| सूरज के शरीर से रिसते हुए रक्त की बूंदों से देखते देखते पूरा आकाश लाल हो गया| सूरज अब पूरी तरह क्षितिज से लुढक चुका था|