2/21/13

एक लोटा समंदर - भाग ३


कृपया पिछले भाग पहले के ब्लॉग में पढ़े - 

एक लोटा समंदर - भाग १

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रात भर मुझे लट्टू के ही सपने आते रहे| कभी मैं विशालकाय लाल पीले रंग के लट्टू पर बैठा लट्टू के साथ नाच रहा हूँ तो कभी लट्टू के ढेर में तैर रहा हूँ| कभी कोई राक्षस मेरा सोने का लट्टू छीन कर अठ्ठाहास करता हुआ भगा जाता है तो कभी स्कूल के पास वाले तालाब में मेरा लट्टू खो गया है और मैं उसे ढूंढ रहा हूँ|  कभी लगा लट्टू आकाश में उड़ा जा रहा है और उसके पीछे मैं भी उड़ा जा रहा हूँ|

किसी तरह रात बीती और सबेरा हुआ| रोज की भांति नहा धो कर मैं जैसे ही बब्बा के पास गया मुझे फीस की याद आ गयी| मैंने बब्बा से फीस मांगी तो बब्बा ने कहा की किसी के हाथों भिजवा देंगे और मुझे उसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है| लेकिन पता नहीं मुझे क्या हो गया, मैं नहीं माना और बब्बा से फीस के पैसे लेकर ही उठा| फीस लेकर, खाकर मैं रमेश के घर आज आधे घंटे पहले ही पहुँच गया, ताकि लट्टू नचाने के लिए थोडा समय मिले मुझे|

रमेश के घर पहुंचा तो देखा रमेश मजे से गन्ना चूस रहा है, मुझे देखकर बोला - “इतनी जल्दी क्यों आ गए ? नौ बज गए क्या ?”
“नहीं अभी नहीं, लेकिन आज थोडा जल्दी चलेंगे, मुझे लट्टू भी तो नाचना है”
मेरा ये बोलना था की रमेश ने मुहं पर उंगली रखकर मुझे चुप रहने का इशारा करते हुए फुसफुसाकर कहा -
“अबे तुम मरवाओगे| यहाँ ये सब बातें नहीं करो, अभी भैया ने सुन लिया तो खाल उधेड़ के भूसा भर देंगे”
“फिर कहाँ नचाएंगे ?”
“वहीँ कल वाली जगह, कुएं के पास| तुम थोड़ी देर रुको मैं कुछ खा के आता हूँ| वैसे भी तुम्हें न जाने लट्टू का कौन सा भूत सवार है जो तुम आधा घंटा पहले ही आ धमाके|”

मरता क्या न करता, वहीँ खटिया पर बैठ कर इन्तजार किया| थोड़ी देर में रमेश अपना स्लेट लेकर आ गया|

कुएं के पास पहुँच कर मैंने कहा - “अब दो मुझे|”
“हाँ हाँ इतने अधीर क्यों हो रहे हो, देते है ना| ” कहकर रमेश ने जेब से लट्टू और डोरी निकली और मुझे दे दिया| ऐसे तो देखने में लट्टू नचाना बड़ा आसान लगता था, लेकिन जब मैंने कोशिश की तो पता चला की इतना आसान काम नहीं है| मेरी कई कोशिशों के बावजूद लट्टू नहीं नाचा, कभी डोरी हाथ से फिसल जाती थी, तो कभी लट्टू कील के बल गिरने के बजाय उल्टा गिर जाता था|

हारकर मैंने रमेश से सिखाने को कहा, रमेश ने बड़े इत्मीनान से लट्टू नचाने की कला का बारीकी से वर्णन किया| किस तरह से डोरी लपटानी है, किस तरह से लट्टू को हाथ में पकडना है, और कितनी तेजी से किस कोण पर हवा में फेंकना है सब कुछ बताया|

ट्रेनिंग लेकर मैंने फिर से कोशिश की, लेकिन ढाक वही तीन पात, लट्टू फिर भी नहीं नाचा| फिर मेरे नन्हें दिमाग में एक ख्याल कौंधा, मुझे लगा की शायद मैं अगर जमीन की बजाय कुएं की पक्की जगत (चबूतरा) पर कोशिश करूँ तो कुछ काम बन जाये| हम दोनों चबूतरे पर चढ गए और फिर से डोरी लपेट कर मैंने लट्टू हवा में उछाला| इस बार लट्टू जैसे ही पक्के चबूतरे पर गिरा, तेजी से नाचने लगा| मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा| रमेश भी खुश हुआ की चलो सिखाना कुछ काम तो आया| हम दोनों चबूतरे पर खुशी के मारे उछालने लगे|

लेकिन ये खुशी बहुत देर नहीं रही, लट्टू नाचते हुए कुएं के और करीब पहुँच गया| मैं और रमेश लट्टू की ओर लपके, लेकिन इससे पहले की हम कुछ कर पाते, लट्टू हमारी आँखों के सामने कुएं में गिर गया| मुझे लगा की लकड़ी का लट्टू तो डूबेगा नहीं, लेकिन शायद लोहे की कील की वजह से पानी में गिरते ही लट्टू दुपुक की आवाज के साथ डूबकर रसातल की ओर चला गया|

मुझे काटो तो खून नहीं, लगा की पैर जम गए हैं और चबूतरे में धंसे जा रहे हैं, दिल की धडकन तो लट्टू के चबूतरे का किनारा छोडते ही रुक गयी थी| दिमाग एकदम खाली हो गया, कुछ सूझना बंद हो गया| रमेश कुछ देर तक तो कुएं में ही देखता रह गया, शायद उसे समझने में थोडा देर लगी की लट्टू डूब गया है| फिर वो चबूतरे से नीचे कूदा और जमीन पर पैर पटक पटक कर रोने, चिल्लाने लगा|

रमेश रोता जा रहा था और मेरा लट्टू डूबा दिया, मेरा लट्टू डूबा दिया चिल्लाता जा रहा था| मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ| थोड़ी देर बाद जब रमेश रो,चिल्ला कर थक गया तो मुझसे कहा - “मेरा लट्टू वापस करो”
“लेकिन वो तो डूब गया है ” मैंने मासूमियत से कहा, मनो उसे ये बात पाता नहीं हो|
“वो मुझे नहीं पाता, मुझे मेरा लट्टू वापस चाहिए”
“मैं कहाँ से लाकर दूं, दोस्ती की खातिर मुझे माफ कर दे” मैंने दोस्ती की दुहाई देकर रमेश को पटाने की कोशिश की|
रमेश ने थोड़ी देर सोचा भी, लेकिन उसे उस समय लट्टू की अहमियत दोस्ती से कहीं ज्यादा दिख रही थी| “नहीं, दोस्ती-वोस्ती नहीं पाता मुझे| मुझे मेरा लट्टू दो, नहीं तो लट्टू के पैसे दो”

पैसे का नाम सुनते ही मुझे याद आया की फीस के पैसे मेरी जेब में पड़े थे, पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लगा की रमेश को ये बात पता चल गयी है, और इसीलिए वो पैसे मांग रहा है और मैं किसी भी हालात में फीस के पैसे उसे नहीं दे सकता था| मैं शर्ट की जेब पर हाथ रखकर वहाँ से भागा, लेकिन जैसा की मैंने पहले भी बता चुका हूँ की रमेश को खेल कूद में कोई नहीं हरा सकता था, उसने मुझे दौडकर थोड़ी ही देर में धर दबोचा और मेरे पैसे छीन कर भागा| मैंने थोड़ी देर तक उसका पीछा किया लेकिन उसकी तेज चाल के आगे मेरी एक न चली और वो थोड़ी ही देर में नज़रों से ओझल हो गया| मैं कुएं के पास वापस आकार चबूतरे से टेक लेकर फूट फूट कर रोने लगा|