बचपन में जब हमारा परिचय भौतिक विज्ञान (physics) और रसायन विज्ञान (Chemistry) से हुआ तो मै मेरा मेरा भाई दोनों ही इन विषयों से बहुत प्रभवित हुए| फिर तो पहले हमने किताब मे लिखे सारे प्रयोग निपटाए और जब फिर भी हमारा मन नहीं भरा तो हमने शक्तिमान के डॉ जैकाल से प्रभावित होकर दुनिया भर के सारे उल-जुलूल एक्सपेरिमेंट कर डाले| मेरा भाई हीटर चालू करके उसके ऊपर कटोरी में पानी रख के उसमे फिर नमक, फिटकरी, शक्कर जैसे सभी घुलनशील पदार्थ डाल कर घंटों गरम करता रहता था, इस आशा में की कुछ नया केमिकल पदार्थ बन के निकलेगा, लेकिन शायद उसकी प्रयोगशाला में कुछ कमी रह गयी और कभी कुछ बना नहीं|
मेरा ध्यान रसायन विज्ञान से ज्यादा भौतिक विज्ञान के प्रयोगों में लगता था, खास तौर से बिजली से चलने वाले उपकरणों में| इलेक्ट्रिक प्रेस, कूलर का टुल्लूर, स्विच इत्यादि घर में कुछ भी ख़राब हो, मैं पेंचकस लेके पहुँच जाता था और मर्ज ठीक करके ही मानता था| मेरे भाई को भी इसका शौक था, लेकिन जब से उसे नंगा बिजली का तार सॉकेट में घुसेड़ के टेबल फेन चलाने के दौरान बिजली का जबरदस्त झटका लगा था, तब से उसने इन सब चीजों से हाय तौबा कर ली थी|
ऐसी ही प्रयोंगों के बीच हमारे घर एक वाकया हो गया| उन दिनों रात में बिजली चली जाने पर हम इमरजेंसी लाइट का इस्तेमाल करते थे जिसे बिजली रहने पर चार्ज कर दो और फिर बिजली जाने पर जला लो| आगे की तरफ दो छोटी सफ़ेद ट्यूब-लाईट लगी थी और पीछे की तरफ एक टार्च लगा हुआ था| साईरन की आवाज करने वाला एक स्पीकर भी लगा हुआ था| कमी थी तो बस एक छोटे पंखे की और गर्मी के दिनों में ये कमी बहुत खलती थी|
खैर वो इमरजेंसी लाइट एक साल चली- दो साल चली और फिर एक दिन अचानक ख़राब हो गयी| मैंने उसे खोला तो मुझे समझ आया की बैटरी चार्ज नहीं हो पा रही है, और आगे आपरेशन किया तो पता चला की बैटरी तक बिजली पहुँच ही नहीं रही है| ये बैटरी एक छोटी काले रंग की रीचार्जेबल बैटरी हुआ करती थी| मैंने अपना यक्कू दिमाग लगाया और सोचा की क्यू न बैटरी को इमरजेंसी लाइट से निकलकर डायरेक्टली ही चार्ज कर लिया जाये| मैंने बैटरी खोल के निकाली और दो तार लिए| दोनों तारों का एक सिरा बैटरी के प्लस और माइनस वाले सिरों में चिपकाया और दूसरा सिरा बिजली के सॉकेट में लगाया|
अगर आपक लोग बेसिक इलेक्ट्रानिक भूल गए हैं तो यहाँ ये बता देना जरूरी है की बैटरी में DC करंट होता है और घरों की सप्लाई में AC| और बैटरी को चार्ज करने के लिए AC से DCकनवर्टर चाहिए होता है| लेकिन तब तक मुझे ये ज्ञान नहीं था| तो मैंने जैसे ही ये सब सेटअप करके बैटरी चार्ज करने के लिए बजरंगबली का नाम लेके स्विच दबाया, वैसे ही तेज़ आवाज और चमक के साथ कही कुछ शोर्ट सिर्किट हुआ और पूरे घर की बिजली गुल हो गयी|
दोपहर का समय था और मम्मी सो रही थी, जैसे ही ये दुर्घटना घटी मम्मी उठ के आई और उन्होंने हमारी प्रयोगशाला देखी तो उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और हमारी जम के धुनाई हो गयी| धुनाई से कोई खास समस्या नहीं थी, लेकिन घर की बिजली गुल थी और शुक्रवार का दिन था, अगर बिजली नहीं बनी तो शाम की फिल्म मिस होने का खतरा था|
जब शाम को पापा आये और मम्मी ने मिर्च मसाला मिला के सब वाकया कह सुनाया| पापा ने पहले तो बगल वाले अंकल को बुलाया जो की बिजली ठीक करने की कला में हमारी कॉलोनी के उस्ताद माने जाते थे| लेकिन समस्या छोटी मोटी नहीं थी, और थोड़ी देर में उन्होंने जवाब दे दिया|
फिर पापा निकल गए डिसूजा जी को बुलाने| अगर आपने मेरी टीवी वाली कहानी पढ़ी होगी तो आपको यद् होगा की हमारी टीवी ठीक करने रामप्रसाद जी आया करते थे| उन्हीं रामप्रसाद जी की दुकान पर डिसूजा जी भी काम करते थे| डिसूजा जी बड़ी ही रोचक शख्सियत के मालिक थी| कोई ४०-४५ की उम्र, विशालकाय शरीर, भारी भरकम डील डौल और बड़ी मूंछे| चाहे कड़ाके की सर्दी हो चाहे चिलचिलाती गर्मी, वो एक हाफ स्वेटर हमेशा पहने रहते थे| उनके मुहं में हमेशा पान ठुंसा रहता था और बोलते वक़्त उनके सामने खड़े रहने के साहस कम लोग ही कर पाते थे| इन सब के अलावा डिसूजा जी डींगें हांकने की कला में माहिर थे और उनके मुताबिक उनकी जान पहचान बड़े बड़े नेताओं और अधिकारियों से थी, सांसद और विधायक जी के यहाँ उनको रोज का आना जाना था| बड़े बड़े मंत्रियों के यहाँ वो बिजली का काम देखते थे और अपने आपको सोसल वर्कर बताते थे| मेरा भाई डिसूजा जी के बहुत मजे लिया करता था, बड़ी ही दिलचस्पी से उनकी डींगे सुनाता था और खोद खोद के सवाल पूछता था, हमारे डिसूजा जी भी बढ़ बढ़ के जवाब देते थे| २५-३० साल का उम्र का अंतर होने के बावजूद मेरी भाई और डिसूजा जी में गाढ़ी मित्रता थी|
डिसूजा जी घर में घुसते ही बोले – “और रोहित उडी दी बिजली तुमने”|
“नहीं अंकल मैंने नहीं, भैया ने उड़ाई है इस बार” मेरे भाई ने कहा, वो मुझे घर पर तो नाम से बुलाता था, लेकिन बाहर वालों के सामने भैया कहके बुलाता था|
“अच्छा कोई नहीं, जरा एक गिलास पानी ले आओ मैं देखता हूँ, फटाफट ठीक करता हूँ इसे” डिसूजा जी बोले|
फिर डिसूजा जी बिजली के मेन बोर्ड की तरफ बढे तो पापा ने कहा “डिसूजा जी स्टूल दे दे एक आपको?”
“अरे कहाँ भाई साहब आप भी स्टूल ढूंढते फिरेंगे| आपने हमें बुला लिया है अब आप आराम करिय| बस १० मिनट में ठीक करता हूँ| मुझे अभी जिलाधिकारी जी के यहाँ दावत पे भी भागना है|” डीसूजा जी ने शेखी बघारते हुए कहा|
“हाँ पापा, डिसूजा अंकल को कोई स्टूल की जरूरत नहीं है| वो तो बिना बिजली बोर्ड खोले ही ठीक कर देंगे” मेरे भाई ने डीसूजा जी को चने के झाड़ पर चढ़ाते हुए मसखरी में कहा| “ज्यादा हो गया रोहित” डिसूजा जी ने कहा और पापा ने आखें तरेर के रोहित की ओर देखा तो वो खिसक लिया|
डिसूजा जी बिजली खोल के काम में जुट गए| लेकिन १० मिनट बीते १५ मिनट बीते २० मिनट बीत गए डिसूजा जी को कुछ समझ नहीं आया| अब उन्हें स्टूल की जरूरत महसूस हो रही थी, लेकिन मांगे तो कैसे, पहले तो नकार दिया था| लेकिन पापा डीसूजा जी की इस झिझक को समझ गए और रोहित से डिसूजा जे के लिए स्टूल मंगा दिया|
लेकिन स्टूल से भी डिसूजा जी का काम नहीं हुआ| डिसूजा जी ने बड़ा वाला टेबल मंगाया, उसके ऊपर स्टूल और उसके ऊपर खुद खड़े होक लाल पीले हरे तारो में अपना सर खपाने लगे| मैं डिसूजा जी के लिए बिस्कुट और पानी ले आया, डिसूजा जी ने सिर्फ पानी पीया और वापस निरीक्षण में लग गए|
मौसम बहुत ठंडा नहीं था, थोड़ी देर में ही डिसूजा जी पसीने से सरोबर हो गए लेकिन कुछ समझ नहीं आया| धीरे धीरे अँधेरा भी हो रहा था| उन्होंने अपना स्वेटर उतर फेंका, आस्तीने खोल के चढ़ाई और वापस जुट गए|
“डिसूजा अंकल आपको डीएम के यहाँ नहीं जाना था क्या” मेरे भाई ने डीसूजा जी की चुटकी लेते हुए कहा| डिसूजा जी ने कोई उत्तर नहीं दिया बस आँखे तरेर के मेरे भाई की ओर देखा और वापस कम ने जुट गए|
मेरे भाई ने मुझसे धीरे से कहा “लगता है डिसूजा जी के होश उड़ गए”|
“चुप कर अगर आज बिजली नहीं बनी तो फिल्म छूट जायेगी| आज गोविंदा की कूली नंबर वन आने वाली थी| और फिर अगर रात मच्छरों के साथ गुजारनी पड़ी तो मेरी खैर नहीं, मम्मी मेरा कचूमर निकाल देंगी”| मैंने भाई को चुप रहने की सलाह देते हुए कहा|
फिर तो बड़ी टेबल उसके ऊपर छोटी टेबल उसके ऊपर स्टूल का एक बड़ा पहाड़ बना और हम दोनों भाई इस पहाड़ को अगले एक घंटे इस कमरे से उस कमरे खिसकाते रहे| अंत में बगल वाले अंकल के यहाँ से छोटी वाली सीढ़ी मंगाई गयी और दो घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद डिसूजा जी की मेहनत रंग लायी और कहीं जाके उन्हें समस्या समझ आई| और उसे ठीक करते ही घर रौशनी से जगमगा उठा, हम सभी ने चैन की साँस ली, लेकिन सबसे ज्यादा कोई प्रसन्न था तो वो थे डिसूजा जी| आज उनकी शेखी सबके सामने खुलकर आ गयी थी| पंखा फुल में चलाकर सोफे पर बैठे हुए मुझसे बोले “रोहित जरा एक गिलास पानी और लाना”
“बड़ी देर लग गयी अंकल इस बार आपको ठीक करने में” मेरे भाई ने मसखरी में कहा|
“अरे समस्या भी तो छोटी मोटी नहीं थी, तुम लोगों AC में DC को जोड़ के जो तबाही काटी वो छोटी नहीं थी| फिर अर्थिंग का तार भी गायब था| फ्युस वायर उड़ गया था| एक बार विधायक जी के यहाँ भी ऐसा ही एक वाकया हुआ था| ......” हवा खाकर और पानी पीकर डिसूजा जी अपने पुराने रंग में आ गए थे|