मुझे बचपन में भूतों से बहुत डर लगता था| डरने को तो लोग सांप, बिच्छू, कनखजूरा जैसे कीड़ों और शेर, चीता जैसे खूंखार जानवरों से भी डरते हैं, लेकिन मेरा मानना था की ये कितने भी खतरनाक क्यों न हो लेकिन भूतों और चुड़ैलो के सामने ये कहीं नहीं टिकते| क्योंकि आप इन्हें देख सकते हैं, ये आप पर हमला करेंगे तो आप को पता लगेगा की हमला किधर से हुआ और कब हुआ| भूत और चुड़ैल तो चुटकी में आपका नामोनिशान मिटा दे और आपको पता भी न चले|
और हमारे गाँव में भूतों ( या यूं कहे कि भूतों की कहनियों) की कोई कमी भी नहीं थी| नहर के पास वाला भूत, जो बारिश में जब तक एक दो मवेशियों को नहर में डुबा कर भोजन न कर ले तब तक मानता नहीं था| सड़क के उस पार वाला भूत, जिसके सर सड़क पर होने वाली सारी मौतें मढ़ी जाती थी| कुएं वाला भूत, जिसके ऊपर कुएं के पास वाली जमीन के बंजर होना का मामला थोपा जाता था|
लेकिन सबसे खतरनाक और रहस्यमयी थी सूखे बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल| गावों में रिवाज के अनुसार दीपावली में हम ऊपर लिखी सभी जगहों पर दिए जला के आते थे, ताकि भूत शांत रहे | लेकिन बरगद का पेड़ दीपावली पर भी अँधेरे में रहता था, कहते हैं पुराने ज़माने में बहुत लोगों ने दिया जलाने की कोशिश की लेकिन कोई भी दिया आज तक वहाँ टिक नहीं पाया| बड़े बूढ़े हो चाहे बच्चे, बरगद के पेड़ के पास कोई नहीं जाता| वहाँ पर सिर्फ गर्भवती महिलाएं जा सकती थी, चुड़ैल का आशीर्वाद लेने|
जैसा की अक्सर होता है किसी भी भयावह और रहस्यमयी चीज के बारे में हजार तरह की कहानियां बन जाती है, वैसे ही बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल कैसे आई, इसके बारे में भी बहुत कहानियां मशहूर है, लेकिन मैं आज आपको जो कहानी बताने जा रहा हूँ वो कहानी मेरी दादी ने सुनाई थी, और मैं इसी कहानी को सच मनाता हूँ |
बहुत साल पहले जब दादी पैदा भी नहीं हुई थी , तब की बात है | हमारे गाँव में पहलवान नाम का एक शख्स हुआ करता था जो की अपनी कुश्ती के लिए मशहूर था| पहलवान का असली नाम बेचनदास था और बेचन का नाम पहलवान कैसे पड़ा इसकी भी बड़ी रोचक घटना है| उस जमाने में प्रचंडवीर नाम का पहलवान बहुत मशहूर हुआ करता था, वो हमारे बगल के गाँव से था और आस पास के दस गावों तक उसे सालों साल कोई हरा नहीं पाया था, कहते हैं उसने एक बार एक भैसे को अपने मुक्कों से मार गिराया था| बेचन भी बहुत बलिष्ट था लेकिन उसे कभी पहलवानी में रूचि नहीं रही| एक दिन बेचन की किसी बात पर प्रचंडवीर से बहस हो गयी, प्रचंडवीर को तो अपनी पहलवानी का घमंड था, वो हाथापाई पर उतर आया, लेकिन उसकी आशा के विपरीत बेचन ने उल्टा उसे ही पीट दिया| गाँव में चर्चा होने लगी कि प्रचंड में अब वो दम नहीं रहा| प्रचंड ने अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को वापस पाने के लिए बेचन को कुश्ती की चुनौती दे दी|
बरगद का पेड़ तब हरा भरा था, बरगद के पेड़ के नीचे ही दंगल लगा, दूर दूर से लोग कुश्ती का ये मुकाबला देखने आये | लोग कहते हैं की उस दिन दोनों अंधाधुंध लड़े, दोपहर से शाम हो गयी, लेकिन देखने वाले जमे रहे| कभी लगता बेचन जीतेगा, कभी लगता की प्रचंड का पलड़ा भरी है| अंत में सूरज डूबने से थोडा पहले पसीने और खून में लथपथ बेचन ने प्रचंडवीर को अपने दोनों हाथों से ऊपर उठा लिया और बरगद की एक जड़ पर दे मारा| सूर्यास्त के साथ ही प्रचंडवीर की पहलवानी का भी अंत हो गया|
गाँव वाले बेचन को कंधे पर उठा के ले आये और उस दिन से उसका नाम पहलवान पड़ गया, उस जमाने में भी बहुत कम ही लोगों को उसका असली नाम पता था | बेचन की शादी त्रिलोचिनी से हुई| त्रिलोचिनी बहुत सुन्दर थी और उसके बड़े बड़े नयनों की चर्चा दूर दूर तक थी कुछ शोहदों ने तो लोचिनी पर बुरी नजर भी डाली लेकिन पहलवान के डर से किसी ने कुछ करने की हिम्मत नहीं की|
बरगद के पेड़ के ही नीचे पहलवान सुबह सुबह कुश्ती और “उड़ी” (लंबी कूद का एक खेल जिसमें मिटटी का एक छोटा टीला बनाकर उस पर से कूदा जाता है) अभ्यास किया करता था और लोचिनी उसका साथ देती थी | दोनों में अटूट प्रेम था और पूरा गावं दोनों पर ही गर्व करता था| दोनों अपने जीवन से बहुत खुश और संतुष्ट थे|
लेकिन ये खुशी बहुत दिन तक नहीं रही| पहलवान को एक दिन किसी सांप ने काट लिया, जहरीला सांप था और घंटे भर में पहलवान का शरीर नीला पीला पड़ कर ठंडा हो गया| लोचिनी ने ये खबर सुनी तो सन्न रह गयी, उससे न रोया गया न कुछ बोला गया, बरगद के पेड़ के नीचे ही पहलवान की चिता को आग लगा दी गयी| पहलवान के मरने पर शोहदों को खुली छूट मिल गयी, सांत्वना देने के बहाने सबने लोचिनी को कुत्सित प्रलोभन दिए| लेकिन लोचिनी ने सबको करारा जवाब दिया, कई को तो सबके सामने बेइज्जत भी किया| पहलवान के मरने पर भी वो पहलवान की उतनी ही थी जितनी उसके जिन्दा रहते थी|
कोई दो महीने बाद खबर आई की लोचिनी गर्भ से है| सबको लोचिनी के चरित्र पर शंका हुई, और इस शंका का फायदा उठाकर उन लोगों ने, जिन्हें लोचिनी ने कई बार सरे आम बेइज्जत किया था, खबर फैला दी की ये बच्चा नाजायज है| पंचायत बिठाई गयी, लोचिनी ने गाँव वालों को ज्यादा सफाई नहीं दी, बस इतना कहा की बच्चा पहलवान का ही है, लेकिन लोचिनी की बात पर पंचायत ने भरोसा नहीं किया और लोचिनी को गाँव से बाहर निकाल दिया| लोचिनी को इससे कोई फरक नहीं पड़ा, वैसे भी पहलवान के मरने के बाद इस गाँव से लोचिनी को कोई लगाव नहीं रह गया था|
गाँव से बहार निकल कर लोचिनी ने बरगद के पेड़ के नीचे ही एक छोटी सी झोपड़ी बनायीं| पहलवान के मरने के दुःख में उसने खाना पीना वैसे ही कम कर दिया था| देखते ही देखते भरा पूरा शरीर कुम्हला कर हड्डी का ढांचा मात्र रह गया| महीने भर में ही उसकी उम्र बीस साल बढ़ी प्रतीत होती थी | अस्त व्यस्त सफ़ेद सारी में, कान्तिविहीन झुर्रीदार चेहरे के साथ खुले बालों में वो बहुत भयावह प्रतीत होती थि| उसका व्यवहार भी अजीब हो गया था| वो घंटों बरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर खुद से बातें किया करती थी| वो ये मानने लगी थी कि पहलवान अब भी जिन्दा है और वो अब भी कुश्ती और उड़ी का अभ्यास करताहै| “बस थोडा और कोशिश करो, आधा हाथ और कूदो तो सबको पिछाड दोगे,” “आज तुमहरा मन नहीं लग रहा अभ्यास में” जैसी आवाजें बरगद के पेड़ के पास रात भर सुनी जा सकती थी| कभी वो रात में उठ कर जोर जोर ताली बजाने लगती थी और ढोल बजा कर नाचने लगती थी, जैसा वो पहलवान के कुश्ती जीतने पर किया करती थी|
गाँव के लोगों ने उसे जीते जी ही भूत मान लिया था, उससे कोई बात नहीं करता था| रात में वो पानी भरने गाँव के एक कुएं पर आती थी तो गाँव की औरतों से दो-चार शब्द बोल लेती थी | औरतें भी उसके फूले हुए पेट की वजह से उस पर दया दिखाकर कभी कभार कुछ खाने को दे देती थी|
एक दिन बहुत जोर की बारिश हुई, सब जन जीवन पानी पानी हो रहा था| काली घुप्प अँधेरी रात में लोचिनी प्रसव वेदना से तड़प रही थी और जोर जोर से दर्द में चिल्ला रही थी| बिजली की चमक में बरगद का पेड़ उस छोटे से झोपड़े के साथ बहुत भयावह लग रहा था, फिर भी गावं की एक औरत हिम्मत करके लोचिनी के पास गयी| लोचिनी ने एक मरे हुए बच्चे को जनम दिया| उस औरत ने जब लोचिनी को बताया की बच्चा मरा हुआ है तो लोचिनी शेरनी की तरह उस पर झपटी और बच्चा उसके हाथ से छीनते हुए बोली “नहीं मेरा बच्चा मरा नहीं है, वो बस अभी सो रहा है, भाग जाओ तुम, सोने दो इसे”| लोचिनी की आँखें और दांत बहार आ गए, नाक और मुहं में खून उतर आया, बिजली की चमक में जब उसका भयावह चेहरा दिखा तो वो औरत तुरंत वहाँ से भाग खड़ीं हुई|
दो दिन तक लोचिनी को किसी ने नहीं देखा, बस लोरी की आवाजें आती थी बरगद के पेड़ के नीचे से| फिर एक दिन लोचिनी ने अपनी रंगबिरंगी जरीदार साड़ी निकली, जो उसने पहलवान के साथ शादी में पहनी थी | उसने साड़ी पहनी, सारे गहने पहने, आँखों और चहरे पर काजल चपोड़ा और सर में ढेर सारा सिन्दूर डाल कर कुएं पर पानी भरने आई|
“लोचिनी ये तुम्हे क्या हो गया है, ये कैसा स्वांग रचा है तुमने” गावं की एक बुढिया ने कुएं की जगत पर पूछा|
“अरे काकी आज नन्नी के बाबा आने वाले हैं, वो नन्नी को देखेंगे तो बहुत खुश होंगे”
“कौन नन्नी ?”
“अरे मेरी बिटिया काकी, बहुत बदमाश है, पूरा दिन सोती रहती है अब इसके बाबा आयेंगे तो जगेगी”
इस पर बुढिया कुछ जवाब नहीं दे पाई, बस आँखें फाड़े लोचिनी को देखती रही|
उसी रात लोचिनी ने झोपड़े के पास एक छोटा गड्ढा खोदा, अपनी मरी बिटिया को उसमे रखा, अपने सारे गहने और कपडे उतार कर अपनी मरी बिटिया के पास रखा और और गड्ढे को मिट्टी से ढँक दिया| फिर उसने एक सफ़ेद साड़ी में खुद को लपेटा और दूसरी सफ़ेद साड़ी से झोपड़ी के ऊपर चढ कर फांसी लगा ली| कहते कि किसी की भी झोपड़ी के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई और लोचिनी की लाश को गिद्ध नोच नोच के खा गए और उसकी सफ़ेद साड़ी के चीथड़े बहुत दिनों तक ऐसे ही लटके रहे|
साल भर में बरगद का पेड़ भी सूख गया (जिसका एक वैज्ञानिक कारण ये था की बरगद के पास से जाने वाली नहर सूख गयी थी, तो हो सकता है की पेड़ भी उसी वजह से सूख गया हो) | जब गावं में जन्म के दौरान एक दो बच्चों की मौत हुई (जोकि उस ज़माने में बहुत आम बात थी) तो उसे लोग लोचिनी की घटना से जोड़ने लगे| तांत्रिक बुला कर बरगद के तने पर धागे लपेट दिए गए और झोपड़े की जगह एक छोटा मंदिर बना दिया गया जहाँ सिर्फ गर्भवती महिलाएं जा सकती थी और धागे लपेट कर अपनी बच्चे की सुरक्षा के लिए आशीष मांगती थी | मेरी दादी ने भी पिताजी के जन्म के पहले वहाँ पर धागे लपेटे थे, और मेरी माँ ने मेरे लिए|
जब बहुत जिद करने पर ये कहानी मेरी दादी ने मुझे सुनाई तो कई दिन तक मैं रात में सो नहीं पाया, आँख बंद करते ही बरगद का सूखा पेड़ सामने आ जाता था| बड़े होने पर मैंने भूत प्रेतों में विश्वास छोड़ दिया, लेकिन फिर भी मेरी आज तक कभी हिम्मत नहीं हुई की मैं बरगद के पेड़ के पास भी जाऊं| मेरे सारे तर्क मिलकर भी बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल का डर मेरे दिल से नहीं निकाल पाते हैं|